DETAILS, FICTION AND लक्ष्मी आरती

Details, Fiction and लक्ष्मी आरती

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तीसरे सावन सोमवार के लिए बाबा महाकाल का मेवा और भांग से शृंगार किया गया

आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥

अंजनि पुत्र महा बलदाई । संतन के प्रभु सदा सहाई ॥

१ लोकप्रिय संगीत २ दोहा ३ चौपाई ४ सन्दर्भ विषयसूची को टॉगल करें हनुमान चालीसा

महाभारत में कर्ण ने श्रीकृष्ण से पूछा?

आखिरकार हनुमान सागर पार करके लंका पँहुचे और लंका की शोभा और सुनदरता को देखकर आश्चर्यचकित रह गये। और उनके मन में इस बात का दुःख भी हुआ कि यदी रावण नहीं माना तो इतनी सुन्दर लंका का सर्वनाश हो जायेगा। ततपश्चात हनुमान ने अशोक-वाटिका में सीतजी को देखा और उनको अपना परिचय बताया। साथ ही उन्होंने माता सीता को सांत्वना दी और साथ ही वापस प्रभु श्रीराम के पास साथ चलने का आग्रह भी किया। मगर माता सीता ने ये कहकर अस्वीकार कर दिया कि ऐसा होने पर श्रीराम के पुरुषार्थ् को ठेस पँहुचेगी। हनुमान ने माता सीता को प्रभु श्रीराम के सन्देश का ऐसे वर्णन किया जैसे कोई महान ज्ञानी लोगों को ईश्वर की महानता के बारे में बताता है।

बालाजी आरती

शिव आरती एक गहन आध्यात्मिक और ध्यानपूर्ण अभ्यास है जो भक्तों को भगवान शिव की दिव्य ऊर्जा से जुड़ने में मदद करता है। ऐसा माना जाता है कि शुद्ध दिल और दिमाग से आरती में भाग लेने से व्यक्ति को शांति, शुद्धि और आध्यात्मिक here उत्थान की गहरी अनुभूति होती है। आरती के दौरान गाए जाने वाले भजन और प्रार्थनाएं भगवान शिव की उपस्थिति और आशीर्वाद का आह्वान करती हैं, और भक्त अक्सर अपनी भक्ति और कृतज्ञता के प्रतीक के रूप में फूल, फल और अन्य प्रसाद चढ़ाते हैं।

सीता माता की खोज में वानरों का एक दल दक्षिण तट पे पँहुच गया। मगर इतने विशाल सागर को लांघने का साहस किसी में भी नहीं था। स्वयं हनुमान भी बहुत चिन्तित थे कि कैसे इस समस्या का समाधान निकाला जाये। उसी समय जामवन्त और बाकी अन्य वानरों ने हनुमान को उनकी अदभुत शक्तियों का स्मरण कराया। अपनी शक्तियों का स्मरण होते ही हनुमान ने अपना रूप विस्तार किया और पवन-वेग से सागर को उड़के पार करने लगे। रास्ते में उन्हें एक पर्वत मिला और उसने हनुमान से कहा कि उनके पिता का उसके ऊपर ॠण है, साथ ही उस पर्वत ने हनुमान से थोड़ा विश्राम करने का भी आग्रह किया मगर हनुमान ने किन्चित मात्र भी समय व्यर्थ ना करते हुए पर्वतराज को धन्यवाद किया और आगे बढ़ चले। आगे चलकर उन्हें एक राक्षसी मिली जिसने कि उन्हें अपने मुख में घुसने की चुनौती दी, परिणामस्वरूप हनुमान ने उस राक्षसी की चुनौती को स्वीकार किया और बड़ी ही चतुराई से अति लघुरूप धारण करके राक्षसी के मुख में प्रवेश करके बाहर आ गये। अंत में उस राक्षसी ने संकोचपूर्वक ये स्वीकार किया कि वो उनकी बुद्धिमता की परीक्षा ले रही थी।

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श्री विष्णु स्तुति - शान्ताकारं भुजंगशयनं

कर्म प्रभाव प्रकाशिनी, भव निधि की त्राता

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